Monday, January 18, 2016

वो शोख नज़र सांवली सी एक लड़की





वो शोख नज़र सांवली सी एक लड़की

जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है



सुना है ,वो किसी लड़के से प्यार करती है

बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है



न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ

बस उसी वक़्त जब वो आती है



कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है मुझे

एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे



मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर

गली के मोड पे खडा हुआ सा एक पत्थर



वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख

और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं



मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे

अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे 

निदा फ़ाज़ली 

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