Monday, January 18, 2016

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए






हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, 

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए;



आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,

 शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए;


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,

 हाथ लहराते हुए हर बात चलनी चाहिए;



 सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए;



मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

 हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए;


 दुष्यंत कुमार 

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