Monday, January 18, 2016

पास रहकर, जुदा सी लगती है





पास रहकर जुदा सी लगती  है ,
जिंदगी बेवफा सी लगती है,


मैं तुम्हारे बगैर भी जी लूँ 

ये दुआ बद्दुआ सी लगती है ,


नाम उसका लिखा है आँखों में

आसुओं की ख़ता सी लगती है,


वो भी इस , तरफ से गुज़रा है 

ये ज़मी आसमां, सी लगती है ,


प्यार करना भी जुर्म है शायद 

आज दुनिया खफ़ा सी लगती है, 


पास रहकर जुदा सी  लगती है 

जिंदगी बेवफा सी लगती है !!

"बशीर  बद्र "

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं




दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं

सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं


हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे

हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं


बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं

इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं


ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना

कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं


हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे

यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं 

"राहत इन्दौरी "

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए






हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए

चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए


मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ

कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए


अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर

मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए


समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको

हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए


मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा

परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए


उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए 

"बशीर बद्र "

वो शोख नज़र सांवली सी एक लड़की





वो शोख नज़र सांवली सी एक लड़की

जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है



सुना है ,वो किसी लड़के से प्यार करती है

बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है



न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ

बस उसी वक़्त जब वो आती है



कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है मुझे

एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे



मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर

गली के मोड पे खडा हुआ सा एक पत्थर



वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख

और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं



मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे

अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे 

निदा फ़ाज़ली 

तू मुझे नींद में बुला तो सही


तू मुझे नींद में बुला तो सही

क्या पता तेरा ख़्वाब हो जाऊँ

दिल की नज़रों से गर पढ़े मुझको

आसमानी किताब हो जाऊँ


अपने होंठों से मुझको चख तो जरा

मैं भी शायद शराब हो जाऊँ


छोड़ कर दिल, दिमाग की मानूं

मैं भी हाज़िर जवाब हो जाऊँ


उम्र मुझको बना ले गर अपनी

रात-दिन का हिसाब हो जाऊँ 

"बेनाम "

तुम्हें जीने में आसानी बहुत है




तुम्हें जीने में आसानी बहुत है

तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है



ज़हर-सूली ने गाली-गोलियों ने 

हमारी जात पहचानी बहुत है



कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे 

तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है



इरादा कर लिया गर ख़ुदकुशी का 

तो खुद की आखँ का पानी बहुत है



 तुम्हारे दिल की मनमानी मेरी जाँ 

हमारे दिल ने भी मानी बहुत है

"बेनाम " 

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है



करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत की चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है



वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या बिस्मिल-ए-दिल में है

खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिक़ोँ का आज जमघट कूचः-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है



है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर.

ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है



हाथ, जिन में हो जुनून, कटते नहीं तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.

और भड़केगा जो शोलः सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है



हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.

जिन्दगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है



यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्क़िलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,



जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है 


"राम प्रसाद बिस्मिल "

क्यूँ तबीयत कहीं ठहरती नहीं



क्यूँ तबीयत कहीं ठहरती नहीं
दोस्ती तो उदास करती नहीं

हम हमेशा के सैर-चश्म सही
तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं

शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह
कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं

ये मोहब्बत है, सुन ज़माने सुन
इतनी आसानियों से मरती नहीं

जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़
जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं...

"फ़राज़ अहमद "

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए






हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, 

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए;



आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,

 शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए;


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,

 हाथ लहराते हुए हर बात चलनी चाहिए;



 सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए;



मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

 हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए;


 दुष्यंत कुमार