Saturday, January 16, 2016

आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुजर जाना( Bashir Badr)




आया ही नहीं हमको आहिस्ता गुजर जाना
शीशे का मुक़द्दर है टकरा के बिखर जाना
तारों कि तरह शब् के सीने में उतर जाना
आहट न हो क़दमों कि इस तरह गुजर जाना
नशे में सँभलने का फन यूँ ही नहीं आता
इन ज़ुल्फ़ों से सीखा है लहरा के संवर जाना
भर जायेंगे आँखों में आँचल से बंधे बादल
याद आएगा जब गुल पर शबनम का बिखर जाना
हर मोड़ पे से दो आँखें हमसे यहीं कहती है
जिस तरह भी मुमकिन हो तुम लौट के घर जाना
पत्थर को मीरा साया आइना सा चमका दे
जाना तो मीरा शीशा यूँ दर्द से भर जाना
ये चाँद सितारे तुम औरों के लिए रख लो
हम को यहीं जीना है हम को यही मर जाना
जब टूट गया रिश्ता सर सब्ज पहाड़ों से
फिर तेज़ हवा जेन किस को है किधर जाना
-बशीर बद्र
ब्लॉगर : महेश  जाँगिड़ 

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