Saturday, January 16, 2016

यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो (Basheer badr)




यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो

वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो


कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से

ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो


अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा, कोई जाएगा

तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो


मुझे इश्तिहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां

जो कहा नहीं, वो सुना करो, जो सुना नहीं, वो कहा करो


ये ख़िज़ां की ज़र्द-सी शाल में, जो उदास पेड़ के पास है

ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो

-बशीर बद्र

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