Saturday, January 16, 2016

नर हो न निराश करो मन को (Maithili sharan gupt)





नर हो न निराश करो मन को

कुछ काम करो कुछ काम करो


जग में रहके निज नाम करो


यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो


कुछ तो उपयुक्त करो तन को


नर हो न निराश करो मन को ... 


संभलो कि सुयोग न जाए चला

कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला


समझो जग को न निरा सपना

पथ आप प्रशस्त करो अपना


अखिलेश्वर है अवलम्बन को

नर हो न निराश करो मन को ...


जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ


तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो

उठके अमरत्व विधान करो


दवरूप रहो भव कानन को

नर हो न निराश करो मन को ...


निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे


सब जाय अभी पर मान रहे

मरणोत्तर गुंजित गान रहे


कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो न निराश करो मन को ...


- मैथिलीशरण गुप्त 

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