Sunday, January 17, 2016

ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी




ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी
ला पिला दे शराब ऐ साक़ी


या सुराही लगा मेरे मुँह से

या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी


मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊँ

है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी


जाम भर दे गुनाहगारों के

ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी


आज पीने दे और पीने दे

कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी


-सुदर्शन फ़ाकिर 


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