Sunday, January 17, 2016

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया





जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया


उस से मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी

ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी* दे गया


सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई

और मुझ को एक कश्ती बादबानी* दे गया


ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया

मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया


* बरा-ए-मेहरबानी = दयापूर्वक

* कश्ती बादबानी = पाल वाली नौका

जावेद अख्तर

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